
मनोज सैनी
हरिद्वार। देवभूमि उत्तराखण्ड में कोरोना काल में पड़ने वाला कुम्भ मेले के अधिकारियों और सत्ताधारियों के लिये भ्रष्टाचार की गंगोत्री बन चुका है। हरिद्वार में भव्य कुम्भ होगा या नहीं इसको लेकर भी सरकार और मेला अधिष्ठान में असमंजस बरकार है। कुम्भ में मुख्य रूप से अखाड़ों की पेशवाई को लेकर भी अखाड़ों की तरफ से कोई स्पष्टता नहीं है। कुम्भ को लेकर शहर में जो निर्माण कार्य किये जा रहे हैं कुम्भ से पूर्व ही उनकी पोल खुल रही है।
आज पहले निर्माण कार्य की पोल उस समय खुल गयी जब पांडे वाला रोड अनाज मंडी के पास एक डंपर नई बनी सड़क में धंस गया। गनीमत यह रही कि बुधवार होने के चलते कोई जानमाल की हानि नहीं हुई है। मगर हादसे के 2 घण्टे बाद भी किसी अधिकारी ने वहां की कोई सुध नहीं ली। हादसे पर स्थानीय विधायक आदेश चौहान का कहना है कि ये नई सड़क है जबकि स्थानीय निवासियों का कहना है कि 2005 के बाद से इस सड़क का कोई पुनर्निर्माण नही हुआ है। बताते चलें कि इसी मार्ग से अखाड़ों की पेशवाई भी निकलनी है।
दूसरी घटना रेलवे पुलिस चौकी ज्वालापुर के समीप जहां आज ही भगवान राम की प्रतिमा को स्थापित किया जा रहा है उससे चन्द कदम की दूरी पर जहाँ टाइलों से भरी ट्रैक्टर ट्रॉली सड़क में धंस गयी। जबकि अभी इसी सड़क का निर्माण कार्य चल रहा है। गौर करने वाली बात ये है कि कुम्भ के नाम पर जो धर्मनगरी में जो भी निर्माण कार्य चल रहे हैं उसकी गुणवत्ता व मानकों की पूर्णतया अनदेखी हो रही है। कोई भी अधिकारी व सत्ताधारी कार्यों की गुणवत्ता को नहीं देख रहा है। मेले से जुड़े अधिकारी हो या सत्ताधारी सभी मात्र बैठकों में ही पारदर्शिता का ढोल पीटते नजर आते है जबकि वास्तविकता पारदर्शिता और गुणवत्ता से कोसों दूर है। कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि हरिद्वार कुम्भ मेले के अधिकारियों और सत्ताधारियों के लिये भ्रष्टाचार का एक बेहतरीन माध्यम बन चुका है।
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