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आज भी बग्वाल की प्राचीन परम्परा को जीवित रखे हुए हैं इस प्रखंड के गाँव

प्रभुपाल सिंह रावत

प्राचीन काल से ही गढ़वाल के गांवों में पूर्वजों के समय से ही बग्वाल मनाने की प्रथा चली आ रही है लेकिन अब आधुनिक जीवन शैली में पुरानी प्रथायें विलुप्त व क्षीण होती जा रही हैं। आज की मानव जाति सभी प्रथाओं को भूलती जा रही है या उपहास उड़ाती है।

आज रिखणीखाल के गांवों में छोटी बग्वाल (11 नवम्बर, 2023),को ग्रामीण अपने पालतू मवेशियों (गाय, बैल, बछिया) आदि के लिए इस त्योहार को पूर्व की वर्षों की भाँति मनाया गया। आज पशुपालकों ने पूरे गाँव के पालतू मवेशियों को एक खुले मैदान एक साथ खोलकर सामूहिक रूप से विशेष गो वंश भोज पकाया गया, जिसमें भात, मंडुवा के आटे का बाड़ी, उड़द दाल की पकोड़े, स्वाला, भूडा आदि बनाया गया। इस गो वंश भोजन के ऊपर फूल आदि परोसकर खिलाया गया। सबसे पहले मवेशियों के पांव धोकर धूप,,धुपाणा तैयार कर हल्दी चावल का पिठाई लगाया गया।फिर पशुओं के सींगों पर सरसों का तेल लगाकर पूजा अर्चना की। उनको धूप-दीप आदि सुंघाया गया। पूरे गाँव के मवेशी एक खुले मैदान में इकठ्ठे हुए। सबको सामूहिक रूप से भोज कराया। बकरियों के लिए नमक, जौ का कुडका तैयार किया गया। जिसे बकरियां बड़े चाव से खाते हैं। खूब छीना झपटी होती रही। अब तो वो बात नहीं रही जो पहले होती थी, फिर भी प्रथा बरकरार है। छोटे बच्चों को ये सब नाटकीय घटनाक्रम लगा। ये प्रथा अब विचित्र सी लगने लगी है।

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