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जो बन बैठे थे स्वंभू महान, खुद पर आन पड़ी तो, याद आने लगा संविधान।

मनोज सैनी
हरिद्वार। प्रेस क्लब, हरिद्वार,  हरिद्वार के कुछ गिने चुने पत्रकारों की एक निजी संस्था है। निजी इसलिए की चंद लोग जिन्होंने प्रेस क्लब के संविधान पर केवल हस्ताक्षर भर किए थे, उसके स्थाई और आजीवन सदस्य बने बैठे हैं और आज तक मठाधीशी कर रहे हैं। इस संगठन की दिलचस्प बात यह है की इसमें अधिकतर को तो प्रेस क्लब ने ही पत्रकार का तमगा दे रखा है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में किसी भी सार्वजनिक संस्था में कहीं भी ऐसी व्यवस्था नहीं है कि कुछ लोग उसमें आजीवन व स्थाई सदस्य बने रहे। हां, एनजीओ या लिमिटेड कंपनी हो तो बात अलग है।
अब बात करते हैं अनुशासन और संविधान की तो इसके संविधान और अनुशासन को भी वही अपने निजी स्वार्थों के लिए समय समय पर प्रयोग करते रहे हैं। यदि कोई पदाधिकारी इनकी चरण वंदना करे तो सब ठीक, वरना तो उसके खिलाफ ऐसी साजिश रचते हैं की वह बदनाम हो जाए और उनके आगे गिड़गिड़ाने लगे। अपने आपको प्रेस क्लब का संस्थापक अध्यक्ष बताने वाले, जो की वास्तविकता में है नहीं और प्रेस क्लब के स्थाई व आजीवन तथा महान कहलाने वाले संघी मानसिकता वाले एक तथाकथित पत्रकार को अब संविधान याद आने लगा है और मजे की बात देखिए दूसरों को अनुशासन का पाठ पढ़ाने वाले ये स्वंभू महान बने पत्रकार स्वयं ही अनुशासन हीनता पर उतर आए हैं और अनुशासनहीनता करते हुए इन्होने अपने फेसबुक पेज पर प्रेस क्लब को अस्वस्थ बताते हुए कई अन्य बातें लिखी हैं, जिस पर कई सदस्यों ने अपनी प्रतिक्रियाएं भी दी हैं। सदस्य नवीन चौहान ने उक्त पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रियाएं देते हुए लिखा है की अस्वस्थ तो बहुत पहले हो गया था, बस आपको देर से पता चला।


इसी प्रकार मनोज रावत ने लिखा है की प्रेस क्लब पर चर्चा इस प्लेटफार्म पर नहीं हो सकती।


सदस्य मुदित अग्रवाल ने लिखा है कि निवेदन है कि प्रेस क्लब के बारे में चर्चा प्रेस क्लब फोरम पर हो तो अच्छा है, सार्वजनिक फोरम पर इस तरह की चर्चा करना उचित प्रतीत नही हो रहा है, हमे आम सभा आहूत करनी चाहिए जहाँ वृहद चर्चा की आवश्यकता है।


इसी प्रकार आदेश त्यागी, कौशल सिखोला, त्रिलोक चंद भट्ट आदि ने भी अपनी प्रतिक्रियाएं दी है। अब बात आती है की इन स्वंभू महान बने पत्रकार ने ऐसी अनुशासनहीनता क्यों की तो विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है की वर्तमान उच्च पदों पर बैठे पदाधिकारियों ने इनकी चरण वंदना करने से साफ इनका कर दिया है, जबकि महाशय चाहते थे की वर्तमान पदाधिकारी उनके घर आएं और उनकी चरण वंदना करें। इतना ही नहीं अपने आप को संस्थापक। अध्यक्ष बताने वाले प्रेस क्लब के संविधान को अपने जूतों की नोक पर रखते है और कई मर्तबा इन्होने संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए गैर संवैधानिक निर्णय लिए हैं।


अब बड़ा सवाल यह है की क्या वर्तमान पदाधिकारी और कार्यकारिणी ऐसे अनुशासन हीन व्यक्ति के खिलाफ कोई सख्त कार्यवाही करती है या फिर आजीवन सदस्यों के आभामंडल में दबकर रह जाते हैं।

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