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हरीश रावत के पपेट के रूप में काम कर रहे हैं गणेश गोदियाल
मनोज सैनी
हरिद्वार। उत्तराखंड विधानसभा के चुनाव दरवाजे पर खड़े हैं और जैसे जैसे चुनाव नजदीक आते जा रहे है हर दल के विधान सभा प्रत्याशी बनने वाले अपनी पार्टी नेता अपनी शक्ति का प्रदर्शन अपने आलानेताओं के सामने कर रहे हैं। बात कांग्रेस की करते है। उत्तराखंड कांग्रेस में जब तक प्रीतम सिंह पीसीसी के अध्यक्ष थे उस समय के सभी सर्वे उत्तराखंड में 40-45 सीटें देकर सरकार बनाने का दावा कर रहे थे और भाजपा की जनविरोधी नीतिओ से आजिज आकर उत्तराखंड की जनता कांग्रेस की तरफ आशा भरी नजरों से देख रही थी मगर जब से उत्तराखंड पीसीसी की कमान गणेश गोदियाल के हाथ में आई तभी से कांग्रेस का ग्राफ गिरता हुआ जा रहा है। इसका मुख्य कारण एक तो हरीश रावत की पार्टी में गुटबाजी व बांटों और राज करो की नीति से वर्षों वर्षों तक कांग्रेस की सेवा व झंडा उठाने वाले कांग्रेसी नाराज हैं, वहीं नव नियुक्त प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल अभी तक भी अपनी कोई पहचान व प्रभाव कांग्रेसियों के बीच नहीं छोड़ पाए हैं और जनता में उनकी छवि हरीश रावत के पपेट के रूप में बन रही है। पार्टी से जुडे वरिष्ठ नेताओं व कार्यकर्ताओं का कहना है कि हरीश रावत ने पंजाब का प्रभारी रहते हुए जो हाल पंजाब कांग्रेस व सरकार का किया है वही हाल उत्तराखंड में भी कर रहे हैं जिससे पार्टी कमजोर हो रही है और कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट रहा है। कांग्रेसी कार्यकर्ता हरीश रावत की नीतियों से आक्रोशित और निराश हो चुके हैं। आपको बताते चलें कि उत्तरखण्ड कांग्रेस में हरीश रावत को गुटबाजी का जनक माना जाता है, सभी कांग्रेसियों इस बात को जानते हैं कि उत्तराखंड को एनडी तिवारी सरकार को जिस प्रकार हरीश रावत ने अपनी गुटबाज़ी के चलते परेशान किया था वो तो एनडी तिवारी एक मंझे हुए नेता थे जो हरीश रावत के सामने मजबूती के साथ टिके रहे। तिवारी सरकार जाने के बाद जब दोबारा कांग्रेस सत्ता में आई तो बहुगुणा का भी यही हाल रहा और बहुगुणा के बाद जब खुद हरीश रावत मुख्यमंत्री बने तो इनकी हिटलरशाही व गुटबाजी के कारण ही पार्टी में विघटन हो गया और कांग्रेस सरकार जाते जाते बची थी मगर पार्टी टूट गयी जिसके बाद सरकार में खुल्लमखुल्ला भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा।
वरिष्ठ कांग्रेसी व मीडिया के लोगों का दावा हैं कि कांग्रेस के एक विधायक जो उस समय इनके हमराज हुआ करते थे अवैध खनन व अवैध शराब का काम वही देखते थे और हरिद्वार हो चाहे कोई अन्य जिला वहीं उगाही करते थे। हरीश रावत उन पर अपने परिवार से भी ज्यादा भरोसा करते थे मगर सत्ता जाने के बाद उक्त चहेता विधायक इनकी सरकार में उगाही हुई धनराशि को लेकर इनसे दूर हो गया। इसी तरह पार्टी की कमान जब किशोर उपाध्याय के हाथों में आई तो उन्होंने हरीश रावत की नीतियों को दरकिनार करते हुए अपने स्वयं के विवेक से पार्टी संगठन को आगे बढ़ाया लेकिन उनकी कार्यशैली हरीश रावत को नागंवार गुजरी और वह तल्खी अब तक चल रही है, उसके बाद प्रीतम सिंह जो हरीश रावत के ही समर्थक रहे हैं जब उन्होंने पार्टी को गुटबाजी से अलग रख पार्टी हित में अपने निर्णय लिये तो वह भी हरीश रावत की आंखों का कांटा बन गये और चुनाव से पूर्व गणेश गोदियाल को अध्यक्ष बनवा लाये। अब जबसे गोदियाल पार्टी प्रमुख बने है तभी से पार्टी का ग्राफ गिरता जा रहा है और कांग्रेस में आस्था रखने वाले और कांग्रेस की विचारधारा रखने वाले लोग चिंतित है कि यदि हरीश रावत की बांटों और राज करो कि नीति चलती रही और जोश से भरे कार्यकर्ताओं में निराशा और उनके टूटते मनोबल से पार्टी सत्ता में तो क्या विपक्ष लायक भी नहीं रहेगी। ताजा उदाहरण जनपद हरिद्वार का है। कहते हैं हरीश रावत अपने निजी फायदे के पहले सुनते है, फिर तोलते है और फिर अपने फायदा होते देख बोलते है। जनपद हरिद्वार में इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देखने को भी मिला। जो कार्यकर्ता वर्षों वर्ष पार्टी को अपनी खेती की तरह सींचता रहा हरीश रावत ने उनके साथ छल करते हुए अपने निजी स्वार्थ के चलते एक बाहरी को पार्टी में शामिल करा लिया। जबकि प्रीतम सिंह ने उत्तराखंड कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए उसे पार्टी में शामिल करने से उसके साथी समर्थकों व उस नेता को दोटूक कह भी दिया था कि मैं पार्टी हित में शामिल नहीं करूंगा। मगर हरीश रावत और गणेश गोदियाल ने उसे चुनाव पूर्व पार्टी में शामिल कर दिया। स्थानीय कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और नेताओं का कहना है कि हरीश रावत ने पहले उसे सुना, टहलाया और फिर अपने निजी फायदे के लिये उसे शामिल कर लिया। विश्वसनीय सूत्र बता रहे हैं कि इस बाहरी नेता को शामिल कराने में हरीश रावत और उनके बेटे का महत्वपूर्ण रोल होने के साथ साथ मोटी डील भी हुई है। अब वह डील कितने में हुई वह तो रावत जी ही बता सकते है। हां पार्टी हरीश रावत के इस कदम से कमजोर जरूर हुई है। विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि जनपद हरिद्वार का स्थानीय सैनी समाज अब हरीश रावत की वादा खिलाफी से सख्त नाराज है और सम्भव है की आने वाले समय में वह हर सीट पर हरीश रावत के पार्टी प्रत्याशी को हराने के काम करे। इसके लिये सुना है जनपद हरिद्वार में एक ऐतिहासिक सैनी सम्मेलन बुलाया का सकता है जिसमें न तो हरीश रावत को बुलाया जाएगा और न उनके पपेट गणेश गोदियाल को, लेकिन सूत्रों से जो जानकारी हाथ लगी है उसमें यह तय है कि जनपद हरिद्वार की 11 विधानसभाओ, 6 के 6 ब्लॉकों के सैनी समाज उस ऐतिहासिक सम्मेलन में बढ़चढ़कर हिस्सा लेंगे और उसमें समाज के उच्च राजनीतिक पदों पर बैठे नेता, मंत्री शामिल हो सकते हैं।
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