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पढिये आखिर हरीश रावत ने क्यों कहा कि चुनावी हारों के कड़वे घूट तो सबको कभी न कभी पीने पड़ते हैं

मनोज सैनी
देहरादून। एक बार फिर उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री व पंजाब कांग्रेस के प्रभारी श्री हरीश रावत ने सोशल मीडिया पर अपने मन की बात साझा करते हुए लिखा है कि आज मैंने पुराने रिकॉर्ड तलाशे, #विधानसभा_चुनाव 2017 में चुनाव के दौरान मैंने 94 सार्वजनिक सभाएं की, जिनमें #किच्छा में नामांकन के दिन की सार्वजनिक सभा भी सम्मिलित है, #हरिद्वार में तो मैं कोई सार्वजनिक सभा कर ही नहीं पाया। शायद मेरे मन में यह विश्वास रहा कि सारे राज्य में चुनाव प्रचार का दायित्व मेरा है और किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण में #चुनाव_प्रचार का दायित्व मेरे सहयोगी-साथी संभाल लेंगे। यह भी एक बड़ी विडंबना है कि जो लोग चुनाव के दौरान अपने क्षेत्र से बाहर, किसी भी विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार में नहीं गये, वो मुझसे 59 सीटों की हार का हिसाब चाहते हैं, हारें पहली भी हुई, हारें बाद में भी हुई। मैंने न बाद की हारों का #हिसाब मांगा है, क्योंकि मैंने उन हारों को भी सामूहिक समझा है और जो पहले की हारें हैं, मैंने किसी से यह नहीं पूछा कि क्या कारण है जो चुनावी #जीत के विशेषज्ञ हैं, उनके चारों तरफ की सीटों में 2007 से हम लगातार क्यों हारते आ रहे हैं? यह भी एक खोज का विषय है और जो आज अपने को अपराजेय मानकर चलते हैं, चुनावी हारों के कड़वे घूट तो सबको कभी न कभी पीने पड़ते हैं। एक ऐसा चुनाव हुआ था जिसमें एक #राष्ट्रीय दल की आंधी चली थी और उसके ऐसे भी उम्मीदवार थे जो अपनी जमानत नहीं बचा पाये थे, लेकिन समय का फेर है #कांग्रेस की शक्ति जब हाथ में आई तो वो लोग कभी पराजित न होने वाले #योद्धा की तरीके से दिखाई देते हैं तो जीत का श्रेय कभी-कभी हमको, पार्टी के उन साथियों के साथ भी बांटना चाहिये, जिनके परिश्रम के बल पर हमको यह सौभाग्य हासिल होता है और मैंने तो 2017 की चुनावी पराजय का केवल 2 ही सीटों पर क्यों? 59 सीटों पर भी हार का दायित्व अपना माना है और उसके लिये पूरी जिम्मेदारी, अपने कंधों पर ली है।

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