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प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम: शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज ने श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट अयोध्या को लिखा पत्र: पत्र में रामलला की मूर्ति, अधूरे मंदिर निर्माण सहित पीछे अनेकों बिंदुओं पर सवाल। पढ़िए पूरी खबर

मनोज सैनी
हरिद्वार। अयोध्या में 22 जनवरी को होने वाले राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में जाने को लेकर लगातार हिंदुओं के सबसे बड़े गुरु शंकराचार्यों के बयान आ रहे हैं। दो पीठों के शंकराचार्यो ने इस आयोजन को धर्म सम्मत के विरुद्ध बता दिया है तथा दोनो शंकराचार्यों ने अभी तक प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के नाम पर हो रहे इस आयोजन पर कोई आपत्ति नहीं की है। मगर यह तय है कि 22 जनवरी को होने वाले प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के नाम पर होने वाले इस आयोजन में कोई से भी शंकराचार्य नहीं जा रहे हैं।
ज्योतिष पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज और पुरी पीठ के शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती-जी महाराज दोनों ने कहा है की अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो सकती यदि ऐसा हुआ तो यह धर्म सम्मत नहीं है। उन्होंने तो यहां तक कह दिया की यदि अधूरे मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होती है तो यह दिव्यांग मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होगी। अब 22 जनवरी को अयोध्या में होने वाले प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को लेकर ज्योतिष पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने एक नई बहस को जन्म देते हुए श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट अयोध्या जी को एक पत्र लिखकर दिया है।

श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट अयोध्या के अध्यक्ष महन्त नृत्यगोपालदास जी महाराज को भेजे पत्र में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज ने लिखा है कि बीते कल (दिनांक 17 जनवरी 2024 ईसवी) को सायं काल समाचार माध्यमों से ज्ञात हुआ कि रामलला की मूर्ति किसी स्थान विशेष से राम मंदिर परिसर में लाई गई है और उसी की प्रतिष्ठा निर्माणाधीन मन्दिर के गर्भगृह में की जानी है। एक ट्रक भी दिखाया गया जिसमें वह मूर्ति लाई जा रही बताया गया।

इससे यह अनुमान होता है कि नवनिर्मित श्री राम मंदिर में किसी नवीन मूर्ति की स्थापना की जाएगी जबकि, श्रीरामलला विराजमान तो पहले से ही परिसर में विराजमान हैं।

यहां प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि यदि नवीन मूर्ति की स्थापना की जाएगी तो श्रीरामलला विराजमान का क्या होगा? अभी तक राम भक्त यही समझते थे कि यह नया मंदिर श्रीरामलला विराजमान के लिए बनाया जा रहा है पर अब किसी नई मूर्ति के निर्माणाधीन मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठा के लिए लाये जाने पर आशंका प्रकट हो रही है कि कहीं इससे श्रीरामलला विराजमान की उपेक्षा ना हो जाए।

याद रखिए यह वही रामलला विराजमान हैं –

• जो अपनी जन्मभूमि पर स्वयं ‘प्रकट’ हुए हैं जिसकी गवाही मुस्लिम चौकीदार ने भी दी है।

• जिन्होंने जाने कितनी परिस्थितियों का वहां पर प्रकट होकर डटकर सामना किया है।

• जिन्होंने सालों साल टेंट में रहकर धूप, वर्षा और ठंड सही है।

• जिन्होंने न्यायालय में स्वयं का मुकदमा लड़ा और जीता है।

• जिनके लिए भीटीनरेश राजा महताब सिंह, रानी जयराजराजकुंवर, पुरोहित पं देवीदीन पांडेय, हंसवर के राजा रणविजय सिंह, वैष्णवों की हमारी तीनों अनी के असंख्य संतों, निर्मोही अखाड़े के महन्त रघुवर दास जी, अभिराम दास जी, महन्त राजारामाचार्य जी, दिगम्बर के परमहंस रामचन्द्र दास जी, गोपालसिंह विशारद जी, हिन्दू महासभा, तिवारी जी, निर्वाणी के महन्त धर्मदास जी, कोठारी बंधु शरद जी और राम जी तथा शंकराचार्यों और संन्यासी अखाड़ों आदि सहित लाखों लोगों ने अपना बलिदान दिया और जीवन समर्पित किया है।

• हमारे अधिवक्ताओं ने प्रस्तुत मुकदमें में माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद की लखनऊ खंडपीठ में गुलाब चन्द्र शास्त्री के पुराने हिन्दू ला के पुराने संस्करण में उद्धृत शास्त्र वचनों का उल्लेख करते हुये यह तर्क दिया था कि स्वयंभू अथवा सिद्ध पुरुषों द्वारा स्थापित/पूजित विग्रह जिस स्थान पर पूजित होते रहे होंगे वहाँ से उन्हें हटाया / प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता। इसी आलोक में यह निर्णय आया है कि रामलला जहाँ विराजमान हैं, वहीं विराजमान रहेंगे ।
स्वयंभू, देव असुर अथवा प्राचीन पूर्वजों के द्वारा स्थापित मूर्ति के खंडित होने पर भी उसके बदले नई मूर्ति नहीं स्थापित की जा सकती। बदरीनाथ और विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग इसमें प्रमाण है।

इन सन्दर्भों में हम आपसे सविनय अनुरोध कर रहे हैं कि कृपया यह सुनिश्चित करें कि निर्माणाधीन मन्दिर के जिस गर्भगृह में प्रतिष्ठा की बात की जा रही है वहां पूर्ण प्रमुखता देते हुये श्रीरामलला विराजमान की ही प्रतिष्ठा की जाय। अन्यथा किया गया कार्य इतिहास, जनभावना, नैतिकता, धर्मशास्त्र और कानून आदि की दृष्टि में अनुचित तो होगा ही श्रीरामलला विराजमान पर बहुत बड़ा अन्याय होगा।

यहां हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि ‘ट्रस्ट’ दर्शनार्थियों में श्रद्धाभावना के संवर्धन के लिए अगर किन्हीं और मूर्तियों को यथास्थान लगाना चाहता है तो उसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं है। लगाई जा सकती हैं। परंतु मुख्य वेदी पर, मुख्य रूप से ‘श्रीराम लला विराजमान’ की ही प्रतिष्ठा अनिवार्य है।

कृपया यथोचित कर हमें अवगत भी कराएंगे ऐसी अपेक्षा है।

पुनश्च-

आपश्री के माध्यम से हम राम जी के इस मन्दिर के स्थपति श्रीमान सोमपुरा जी से भी जानना चाहेंगे कि वास्तु शास्त्र के अनुसार मन्दिर पूर्ण निर्मित होने पर ही निर्माण कारयिता को समर्पित किया जाता है। तो उन्होंने अर्धनिर्मित मन्दिर को किस आधार पर प्रतिष्ठा के लिये उपलब्ध करा दिया और इस कारण से होने वाले अतिरिक्त व्यय और आगे निर्माण के चलते रहने पर दर्शनार्थियों की सुरक्षा का दायित्व क्या वे ले रहे हैं? क्योंकि निर्माणाधीन परिसर के लिये भी कुछ नियम कानून हैं जिनका पालन आवश्यक होता है।

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