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विकास के नाम पर सरकारों ने लिखी उत्तराखंड में विनाश की पटकथा : स्वामी शिवानंद

अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन के उद्घाटन में सभी वक्ताओं ने राज्य में अनियोजित विकास के परियोजनाओं पर रोक लगाने की मांग की

विकास झा
हरिद्वार। मातृ सदन के स्वामी शिवानंद महाराज ने कहा कि विकास के नाम पर उत्तराखंड के विनाश की पटकथा लिखी जा रही है। उत्तराखंड बचेगा, तभी देश बचेगा। इसलिए सभी लोगों को एकजुट होकर उत्तराखंड को बचाने के लिए प्रयास करना होगा।
गौरतलब है कि गंगा, हिमालय और उत्तराखंड बचाने को लेकर मातृ सदन आश्रम में अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। रविवार को कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में जुटे सभी वक्ताओं ने एक स्वर में उत्तराखंड को बचाने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार से विकास के नाम पर प्रस्तावित परियोजनाओं पर रोक लगाने की मांग की। जोशीमठ आपदा सरकार के अनियोजित विकास का जीता जागता उदाहरण है। इससे सबक नहीं लेने पर उत्तराखंड को बचाना भी असंभव होगा।‌ अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए स्वामी शिवानंद ने कहा कि उत्तराखंड की स्थिति पर पूरे विश्व की नजर है। जिस प्रकार सरकारों ने उत्तराखंड में विकास के नाम पर विनाश की पटकथा लिखी है। उसका दुष्परिणाम सबके सामने है। हिमालय के पहाड़ दड़क रहे हैं, गंगा का जल स्तर घटता जा रहा है। इनका अस्तित्व खतरे में है, लेकिन सरकार को इसकी तनिक भी चिंता नहीं है। उन्होंने कहा कि विनाश की पटकथा का जोशीमठ आपदा जीता जागता उदाहरण है।‌ आज जोशीमठ के लोग सर छुपाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं। ऐसे में हिमालय, गंगा के साथ उत्तराखंड बचाने की जिम्मेदारी समस्त देशवासियों की है। इसलिए मातृ सदन में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन में देश-विदेश के लोगों को आमंत्रित किया गया है। इस मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि जोशीमठ आपदा को लेकर उन्होंने केंद्र सरकार को आगाह किया था। कांग्रेस सरकार के शासनकाल में इस पर रोक लगाने की सहमति भी बनी थी लेकिन भाजपा सरकार के में सत्ता में आने के बाद सभी योजनाओं को शुरू कराया गया। उन्होंने कहा भाजपा सरकार अपने अहंकार के सामने किसी की नहीं सुन रही है। पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने कहा कि हरक सिंह रावत ने यूपी की तर्ज पर उत्तराखंड का विकास किया जा रहा है जबकि उत्तराखंड की भौगोलिक स्थितियां यूपी से पूरी तरह अलग है। ऐसे में सरकार को विकास की योजनाएं उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखकर बनानी चाहिए। ‌बाबा हठयोगी ने कहा कि मातृसदन के संत निस्वार्थ भाव से, बिना किसी दबाव के समर्पित होकर गंगा संरक्षण के लिए संघर्ष करते चले आ रहे हैं।‌ स्वामी निगमानंद के समान अनुशासित, शिष्य बिरले ही मिलते हैं । जिन्होंने अपने गुरु के आदेश पर मां गंगा की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। उन्होंने कहा कि वें स्वयं चुगान के पक्ष में थे, किंतु चुगान के नाम पर भी 20- 20 फीट गहरे गड्ढे खोद देना अनुचित है। जोशीमठ बचाओ संघर्ष के सदस्य अतुल सती ने कहा कि जोशीमठ में जमीन धसक रही है,मकानों में दरार आ रही है। 8वीं सदी में शंकाराचार्य आने के बाद
सामरिक बॉर्डर है। प्राचीन शहर बदरीनाथ फूलों की घाटी था। लेकिन पावर प्रोजेक्ट शुरू होने से दुर्दशा का दौर शुरू हो गया। मिश्र आयोग की संस्तुति को सरकार ने नहीं माना। इसके चलते लामबगड़ पांडुकेश्वर तबाह हो गए।‌ उन्होंने कहा कि वर्ष 2000 में उत्तराखण्ड बनने के बाद जोशी मठ में परियोजनाओं को हरी झंडी दिखाई।
2005 में सीएम नारायण दत्त तिवारी का बहुत विरोध हुआ और जोशीमठ में उद्घाटन समारोह में पहुंचने नही दिया। इसके परिणामस्वरूप उन्होंने देहरादून से ही किया। अतुल सती ने कहा कि जोशीमठ में 867 घर जहां हल्की दरारें है। पूरा जोशीमठ प्रभावित है।
एनटीपीसी ने सुरंग बनाने को दोषी नही माना । सरकार ने ठीकरा ड्रेनेज सिस्टम पर फोड़ दिया। मानव केन्द्रित विकासनाही हैं। बदरीनाथ तक जगह जगह संवेदन शील जोन बन गए हैं और कभी भी नष्ट हो । ऐसे विकास को सरकार रोके। डॉ रवि चोपड़ा ने कहा कि जल से भरे हुए 100 किमी धौली गंगा के आखिरी 50 किमी पर 6 बांध प्रस्तावित किया।‌ एटकिंसन ने लिखा कि माना पास और मलारी दोनो हेलंग से निकलता है और जोशीमठ सबसे संवेदन शील एरिया भूकंप के लिया। 1993 में ओली के विकास से पहाड़ नष्ट हुआ।‌ 2003 में तपोवन लोक विज्ञान से लोगों ने आवाज उठाई। इसके विरोध में 2013 केदारनाथ आपदा से विष्णु प्रयाग बांध नष्ट हो गया। 2014 की उनकी रिपोर्ट में स्पष्ट कहा की इस जोन में कोई बांध नहीं बनना चाहिए। उनकी राय मानी जाती तो 2021 की आपदा नहीं आती। 2021 से पहले 2009, 2012 की 2 घटना से भी सरकार ने सबक नहीं लिया। लार्सन टर्बो ने कहा की सुरंग के बाहर दरारें पड़ गई और अंदर की और चौड़ी हो गई। एनटीपीसी ने पूरी पड़ताल नहीं की। इस आपदा के बारे में पूरे देश में समझाएं जो आज यहां आएं हैं। इशरो के खुलाशे सरकार भी डरी है। पहाड़ की धरती बहुत ही तेजी से दरक रही है। पिछले 22 महीनों की रेट पिछले 14 दिनों में 11 गुना हो गई है। टिहरी पर वैज्ञानिक अध्ययन किया हिमालय क्षेत्र बहुत ही अति संवेदनशील है। कार्यक्रम में विमला पांडे, राजवीर सिंह, फुरकान अली, संजीव चौधरी, मनीष कर्णवाल, मुरली मनोहर, डॉ विजय वर्मा, वर्षा वर्मा, राजीव चौधरी नरेश शर्मा रिद्धिमा पांडे, गरूणध्वज महाराज, रमेश शुक्ला, सब्यसाची तिवारी, राजीव चौधरी, स्वामी मुकुंद कृष्ण दास महाराज, गौडियामठ, चौधरी भोपाल सिंह, रियाज उल अली एवं हरियाणा से आए किसान नेता गुरूनाम चढूनी सहित अन्य लोग मौजूद रहे।‌

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