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भव्य और दिव्य के चक्कर में क्या मेला अधिष्ठान हिन्दुओं की आस्थाओं का अपमान नहीं कर रहा? पढिये पूरी खबर

मनोज सैनी
हरिद्वार। सरकार व मेला अधिष्ठान हरिद्वार कुम्भ को भव्य और दिव्य बनाने के लिये प्रतिबद्ध है। इस बार कोरोना के कारण अभी तक कुम्भ के निर्माण व अन्य कार्य अभी तक पूरे नहीं हो पाए हैं। उत्तराखण्ड सरकार व मेला अधिष्ठान कुम्भ नगरी को दिव्य व भव्य बनाने के लिये पैसा भी पानी की तरह बहाया जा रहा है। पुलों की दीवारों से लेकर मां गंगा की धारा के आस पास भवनों को एक विशेष रंग से सजाया भी जा रहा है। जिसमें तरह तरह की कलाकृतियां बनाई जा रही है लेकिन बड़े अफसोस की बात है कि सरकार व मेला प्रतिष्ठान कुम्भ को भव्य व दिव्य बनाने के चक्कर में हिन्दू धर्म की आस्था से भी खिलवाड़ कर रहा है। बहुत मजबूरी वश इस बात को आज लिखना पड़ रहा है कि क्योंकि अभी तक किसी भी हिन्दू धर्म के ठेकेदार और न हिन्दू धर्म का ठेकेदार होने का दावा करने वाले उखाडों ने इन चीजों पर न तो नहीं किया है और न ही सरकार व मेला अधिष्ठान के समक्ष अपनी आपत्ति दर्ज कराई है।

सन्तों के अखाड़ों के आपत्ति न करना तो समझ आता है क्योंकि सरकार ने उन्हें 1-1 करोड़ रूपये देकर उनका मुहँ पहले ही बन्द कर दिया है लेकिन अन्य धार्मिक संस्थायें भी चुप है। समझ से परे है।आप खुद ही बताएं कि क्या हिन्दुओं की आस्था के धाम श्री बद्रीनाथ जी, श्री केदारनाथ जी, श्री यमनोत्री धाम जी, श्री गंगोत्री धाम जी को किसी पहचान या प्रचार की जरूरत है जो उन्हें पुल के नीचे के पिलरों पर रंगों व कलाकृतियों के द्वारा दर्शाया गया है? जहां कोई भी ऐरा गिरा आकर थूक सकता है, शौचालय कर सकता है और न जाने रात में शराब भी पी सकता है। यह हिन्दू धर्म की आस्थाओं के साथ खिलवाड़ नहीं तो और क्या है? क्या इससे पूर्व कुम्भ नहीं हुए है? क्या इससे पूर्व कभी कुम्भ में हिन्दुओं के धामों का इस प्रकार से प्रसारण हुआ है? ठीक है सरकार और मेला प्रतिष्ठान इस बार कुम्भ को भव्य और दिव्य बना रहा है लेकिन बड़ा सवाल तो यही है की क्या दीवारों पर हिन्दुओं की आस्थाओं के प्रतीकों को कहीं भी आप रंगों व कलाकृतियों के जरिये प्रसारित कर सकते है? क्या हमारे धाम अब इस स्थिति में या दशा में आ गए है कि उन्हें रंगों के जरिये कहीं भी दीवारों पर उकेरा जा सकता है? यदि फिर भी मेला अधिष्ठान और सरकार को लगता है कि कुम्भ को भव्य और दिव्य बनाने के लिये हिन्दुओं के धाम की आवश्यकता है तो इन धामों का स्टेचू बनाकर किसी उचित स्थान पर स्थापित भी तो किया जा सकता है। हिन्दू धर्म के ठेकेदारों सरकार व मेला अधिष्ठान को इस और ध्यान देना होगा अन्यथा ऐसे दिखावे से हिन्दुओं का कोई भी भला नहीं होने वाला, जहां सिर्फ आस्था के नाम पर दिखावा हो और जनता के टैक्स के पैसे की बर्बादी हो।

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