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हरिद्वार में राजनैतिक दलों की गुटबाजी, अपने ही नेताओं की खींच रही है टांग।

वरिष्ठ पत्रकार डॉ0 रमेश खन्ना की कलम से

हरिद्वार में कॉरिडोर का भयंकर विरोध तो एक ज्वलंत मुद्दा है ही परंतु इस धर्म की नगरी में समस्याओं का अम्बार है जिसे ना कोई देखने वाला है ना सुनने वाला। हकीकत तो यह है कि हरिद्वार की स्थिति वो है कि “रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था”।

यहां राजनैतिक स्थिति ऐसी हो गई है कि एक खादी का कुर्ता पाजयमा पहनकर उस पर एक खादी का जवाहर कट पहन लो। दो चार चाटुकार साथ ले लो आप हो गए प्रदेश स्तर के नेता, शैक्षणिक योग्यता क्या है? आपका शहर की जनता का दर्द क्या हैं? इससे कोई सरोकार नहीं। नेताजी का महिमा मंडन करने वाले दरबारी भाट और चारण वाले कुछ छपा-छपाई करने वाले जिंदाबाद है ही।

अब हरिद्वार में एक पूर्व विधायक अपनी बिरादरी को एकत्र कर राजनीति के नए समीकरण तैयार कर रहे हैं कहीं स्कूलों में बस्ते बांट रहे हैं। कहीं गणपति उत्सवों में अपने चंद चारणों के साथ शिरकत कर रहे हैं। यह सब तो जो चल रहा हैं, यह भी कई प्रश्न खड़े कर रहा है। सांसद के चुनाव में अभी 5 वर्ष हैं। विधायक अभी 2027 तक है तो क्या यह पूर्व विधायक साहब अपने नेतागिरी के इस अंदाज को ऐसे कब तक बरकरार रख पाएंगे? हरिद्वार का एक वर्ग दलगत राजनीति से हटकर इन पूर्व विधायक जी के साथ खड़ा है इसमें कोई संदेह नहीं है परंतु क्या एक ही जाति वर्ग की राजनीति इन्हें हरिद्वार में सर्वमान्य नेता के रूप में स्थापित कर पाएगी? या इनकी निर्दलीय भूमिका की तैयारी की जा रही है।
बहरहाल भाजपा में एक वर्ग विशेष को इकट्ठा कर यह बीजेपी को कमजोर करने का भी काम समझा जा रहा है या आने वाले वक्त के लिए उनकी उम्मीदवारी को पुख्ता किया जा रहा है। खैर यह तो अभी बहुत दूर की कोडी है तब तक ऊँट किस करवट बैठे यह भविष्य के गर्भ में छिपा है। परंतु यह शाश्वत सत्य है कि हरिद्वार में राजनैतिक दलों की गुटबाजी और अपने ही नेताओं की टांग खींचने की जो परंपरा शुरू हो गई है, उसने इस तीर्थ नगरी के बाशिन्दों का दर्द तो दफन कर ही दिया हैं। हरि की नगरी मोक्ष के द्वारा श्री माँ गंगा के तट हरिद्वार की फिजा को तहस-नहस कर दिया है।
“हरिद्वार को फिर से किसी भागीरथ की तलाश हैं।”

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