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ब्रिटिश काल के जमाने का बना हुआ “लाल पुल” गिन रहा है अन्तिम सांसें।

प्रभुपाल सिंह रावत

कोटद्वार-दुगडडा सड़क मार्ग पर सिद्धबलि मंदिर से लगभग 1 किलोमीटर आगे बना अंग्रेजों के शासनकाल के जमाने का बना हुआ लोहे का पुल है। इस पुल की लम्बाई लगभग 60-70 मीटर व चौड़ाई 5 मीटर आंकी गयी है। वाहन चलते समय आवाज होती है। इसमें चार पहिये वाहन सिंगल वे सिस्टम पर ही गुजरते हैं।

ये पुल जनपद पौड़ी गढ़वाल का लाइफ लाइन भी कहा जाता है। इसे अधिकतर लोग लाल पुल नाम से ही जानते हैं। पहले कभी इसके लोहे पर लाल रंग किया होता था। यदि आने वाले समय में यह पुल क्षतिग्रस्त हुआ तो लगभग पौड़ी जिले का 75 प्रतिशत भू भाग का कोटद्वार, जिसे गढ़वाल का द्वार भी कहा जाता है, से सम्पर्क व यातायात टूट जायेगा। इस पुल का और कोई विकल्प भी नहीं है और न तलाशा जा रहा है। ये पुल रिखणीखाल, नैनीडांडा, जयहरीखाल, पौड़ी, बीरोखाल, लैंसडौन छावनी आदि कई कस्बों, शहरों व गाँवों को यातायात से जोड़ने का काम करता है। गौरतलब है कि इस पुल के नीचे से दुगड्डा, उसके आसपास के गांवों, जंगलों से जो भी पानी आता है,इसी पुल से गुजरता है। 15 किलोमीटर की दूरी में दरकती पहाडिय़ों का मलवा, पत्थर व पेड़ पौधों का बहना इसी पुल के नीचे से होता है।

इस दशा में अब इस पुल के अधिक जीवित रहने के आसार नजर नहीं आते व स्थिति भी बदतर होती जा रही है। सालों से मरम्मत व रखरखाव की सम्भावना भी नहीं दिखी। अब आधुनिक जीवन शैली, यातायात के अधिक दबाव के कारण जाम की स्थिति भी बनती जा रही है। 70-80 के दशक में उत्तर प्रदेश में रहते हुए इस पुल के किनारे पर सशस्त्र पुलिस पिकेट हुआ करती थी, अब वो भी नजर नहीं आती। किसी अनहोनी होने पर या रात के समय खैर खबर भी नहीं मिलती।यातायात के संचालन में भी पुलिस पिकेट के बिना दिक्कत है क्योकि पुल सिंगल वे वाहनों के उपयोग के लिए ही है। आज की तिथि में पुल की स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती। ऐसा महसूस होता है कि जीर्णोद्धार होना जरूरी है व इस मार्ग का विकल्प तलाशना भी आवश्यक है। आये दिन बरसात में कोटद्वार-दुगडडा सड़क मार्ग वाधित ही देखा गया है। समय रहते नीति नियंताओ को धरातल पर आवश्यक कदम उठाने आवश्यक हैं।

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