ब्यूरो
समान नागरिक संहिता के अन्तर्गत मौैजूदा विशेष परिस्थितियों में सबको एक से अधिक पत्नियां रखने की अनुमति होनी चाहिये। इस सुझाव सहित भारत के विधि आयोग को राष्ट्रीय स्तरीय सूचना अधिकार कार्यकर्ता, 44 कानूनी पुस्तकों के लेखक, पूर्व लाॅ लैक्चर नदीम उद्दीन (एडवोकेट) ने विस्तृत सुझाव प्रेषित किये है।
भारत के विधि आयोग के सार्वजनिक आमंत्रण पर काशीपुर निवासी नदीम उद्दीन एडवोकेट ने विस्तृत सुझाव प्रेषित किये हैै। समान नागरिक संहिता लागू करने की कानूनी बाध्यताओें, विवाह, तलाक, उत्तराधिकार तथा दत्तक ग्रहण (गोद लेने) सम्बन्धी कानूनों से सम्बन्धित सुझाव शामिल हैै।
श्री नदीम के सुझावों के अनुसार समान नगारिक संहिता लागू होने में भारत के विधि आयोग की 31 अगस्त 2018 की रिपोर्ट में उल्लेखित संवैधानिक बाधायें वर्तमान में भी विद्यमान है। यद्यपि डाॅ0 भीमराव अम्बेडकर के संविधान सभा में सुझाव के अनुसार इसे ऐच्छिक रूप से लागू करके इसको लागू करने का प्रयास किया जा सकता है।
श्री नदीम के विवाह सम्बन्धी कानूनोें सम्बन्धी संशोधन के सुझावों में जन्म मृत्यु के समान सभी विवाहों का अनिवार्य रजिस्ट्रेशन, विशेष परिस्थिति में एक से अधिक पत्नियां रखने की अनुमति, दहेज पर पूर्ण प्रतिबंध के लिये दहेज वाले विवाह को अवैध माना जाना, लिव इन रिलेशन का रजिस्ट्रेशन व विवाह के समान दायित्व मानने वाले सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के परिप्रेक्ष्य में कानूनी प्रावधान शामिल है।
श्री नदीम के तलाक सम्बन्धी कानूनों के सुझावों में सभी तलाकों का अनिवार्य रजिस्ट्रेशन, आपसी सहमति व पुरूषों द्वारा विशेष परिस्थितियों में न्यायालय के बाहर तलाक, तलाक चुनौती व तलाक के मामलों का निस्तारण अधिकतम तीन माह में करने के प्रावधान शामिल है।
श्री नदीम के उत्तराधिकार सम्बन्धी कानूनों के सुझावों में मनमानी वसीयत व जैविक उत्तराधिकारियों को बेदखल करने पर प्रतिबंध, एच.यू.एफ.की भेदभाव पूर्ण व्यवस्था की समाप्ति, महिलाओं को पुरूषों के वास्तविक समान सम्पत्ति अधिकार सुनिश्चित कराने के प्रावधान शामिल है।
श्री नदीम के दत्तक ग्रहण (गोद लेने) सम्बन्धी कानूनों के सुझावों में न्यायहित, धोखाधड़ी से अपराधों से बचाव तथा जैविक संतानों के अधिकारों के संरक्षण हेतु मनमाने दत्तक ग्रहण (गोद लेने) पर प्रतिबंध व अनिवार्य रजिस्ट्रेशन शामिल है। राजभाषा हिन्दी में ही प्रस्तृत करने का भी सुझाव दिया हैै।
श्री नदीम ने इन विस्तृत सुझावों में इन सुझावों वाले प्रावधानों की उपयोगिता का भी उल्लेख किया हैै। इसके अनुसार विशेष परिस्थितियों में एक से अधिक अधिकतम 4 तक पत्नियों की अनुमति मौजूदा पत्नि/ पत्नियों की लिखित अनुमति से ही छूट दी जा सकती हैै। मौैजूदा पत्नि/पत्नियों से विवाद, मानसिक स्थििति बीमारी के चलते पति को पुनः विवाह की अनुमति न देने पर सक्षम न्यायालय द्वारा छूट दी जा सकती है।
इसके अतिरिक्त एक से अधिक पत्नियां रखने वाले पति द्वारा सभी पत्नियों के साथ समान व्यवहार न करने पर ’’क्रूरता’’ मानते हुये पीड़ित पत्नि को घरेलू हिंसा अधिनियम के अन्तर्गत उपचार पत्नि का अधिकार होना चाहिये। इसकी उपयोगिता को उल्लेख करते हुये श्री नदीम के पति की अधिक शारीरिक जरूरतें, पत्नि की लगातार बीमारी आदि, पत्नि के संतान उत्पत्ति को सक्षम न होना, पत्नि की संतान उत्पत्ति के लालन पालन की इच्छा न होना, सभी विवाह की इच्छा रखने वाली महिलाओं को विवाह का सुख देने के लिये तथा व्यभिचार तथा वैश्यावृत्ति नियंत्रण हेतु बताया है। इन सुझावों में भी स्पष्ट किया हैै कि बहुपत्नि विवाह का जनसंख्या वृद्धि से कोई सम्बन्धी नहीं हैै।
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